विकृति मानसिकता
शुक्रिया ओ जाँबाज़ लड़की, इस दुनिया में आने और इस देश के साथ ही दुनिया के कई हिस्सों को झकझोरने के लिए. हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां हर चीज को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है और हमारी संवेदनाएं लगातार सुन्न हो रही हैं. हमारे हर ओर चीज़ें इतने अतिरेक में इस क़दर ज़्यादती में हो रही हैं कि हम पर अपने आस-पास की सुंदरता और दर्द का असर होना बंद होता जा रहा है. और ये असंवेदनशीलता रोजबरोज़ बढ़ती जा रही है. इस वक्त बाहरी स्तर पर बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है- न्यायापालिका, पुलिस, सरकारी नीतियां.. सब जगह बड़े बदलावों की जरूरत है. हालांकि मेरे लिए बड़ा बदलाव, असल बदलाव आंतरिक स्तर पर होना चाहिए. वो बदलाव होना चाहिए मेरे दिमाग मे, हर भारतीय के दिमाग में. ये दुख की बात है कि एक भारतीय लड़के के दिमाग को कभी किसी लड़के के दिमाग के बराबर ही नहीं समझा जाता.
असमानता के बीज
दरअसल हमारे समाज में लड़के को लेकर कभी किसी के दिमाग में सुरक्षा के जुड़े उपाय नहीं आते और न ही किसी को उसकी शादी की चिंता होती है. उसके लिए दहेज की भी कोई परवाह नहीं होती और न ही इस बात फ्रिक की जाती है कि वो एक लड़के को जन्म दे पाएगा या नहीं. उसे तो हमेशा ऐसा सस्ता निवेश माना जाता है जो हमेशा ऊंचा मुनाफा देता है.दुर्भाग्य से यही वो सच है जिसकी वजह से हर भारतीय माता-पिता बेटे की इच्छा करता है.लड़के और लड़की में भेदभाव को आप छोटी-छोटी बातों में भी महसूस कर सकते हैं. इसकी शुरुआत तभी हो जाती है जब छोटे-छोटे लड़कों की माँएं उन्हें खेल के मैदान में पेड़ों की जड़ों में पेशाब करने देती हैं जबकि लड़कियों को बाकायदा शौचालयों में ले जाया जाता है.इसकी शुरुआत तभी हो जाती है जब हम लड़कों को बचपन में जानवर कह कर बुलाते हैं और लड़कियों को कोमल गुड़िया. हमारे दिमाग में ये भेदभाव तभी से आकार लेने लगता है. लड़के को हम छोटा ही सही लेकिन जानवर मान लेते हैं और कई बार ये समझने लगते हैं कि उसे सुधारना मुश्किल है. वहीं लड़कियों को बचपन से ये सिखाया जाता है कि उन्हें कैसे बैठना है, कैसे खड़ा होना है और कैसे चलना है. उन्हें ऊंची आवाज में बात न करने को कहा जाता है, साफ सुथरा रहने की सीख दी जाती है और बाकी बहन भाइयों का ख्याल रखने की हिदायत दी जाती है. लड़कों को इनमें से कुछ नहीं सिखाया जाता है. अपने लड़कों को आम इंसानों की तरह रोने देंगे. अपने बेटों से हम कब ये कहना छोड़ेंगे, “क्या लड़कियों की तरह रो रहे हो?” समय आ गया है कि हम अपने लड़कों को एक सामान्य इंसान की तरह व्यवहार करने दें. समय आ गया है जब सिर्फ लड़कियों के लिए ही नहीं, लड़कों के लिए भी नियम बनाए जाएं. हमें अपने बेटों और बेटियों को सिखाना होगा कि उन्हें आत्मनिर्भर बनना है.
मतलब हमारे बेटों को पता होना चाहिए कि खाना कैसे बनाते हैं या साफ सफाई कैसे करते हैं. दूसरी तरफ बेटियों की सिखाना होगा कि पैसे को कैसे कमाना है और कैसे संभालना है. उन्हें बाहरी दुनिया को समझने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाना होगा. हमें बच्चों के साथ माता पिता और समाज के तौर पर संपर्क कायम करना होगा. जब कोई बच्चा या युवा गलत रास्ते पर कदम बढ़ाता है तो उसे अपने माता पिता और समाज पर भरोसा करना होगा कि वे उन्हें सुरक्षा देगें और अपराधियों को सजा देंगे.
हमारी अंदरूनी दुनिया में ऐसा बहुत कुछ है जिसे हमें दुरुस्त करना है. दामिनी/निर्भया/अमानत, वेदना तुमने हमें एक आइना दिखाया है... धन्यवाद उन बहादुर लोगों का जिन्हें सड़कों पर उतर कर हमें अपनी वास्तविकताओं का सामना करने का रास्ता दिखाया है. हमें आपको अपनी अंदरूनी दुनिया करने का वादा करना होगा ...। सही मायने में यहीं वेदना की सच्ची श्रृद्धांजलि है...।
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